नाटक-एकाँकी >> शकुन्तला की अँगूठी शकुन्तला की अँगूठीसुरेन्द्र वर्मा
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‘शकुन्तला की अँगूठी’ कालजयी ‘अभिज्ञान शाकुंतल’ की समकालीन पुनर्व्याख्या है। चौथी शताब्दी ई.पू. में रचित संस्कृत गौरवग्रन्थ में एक ओर तत्कालीन भारतीय जीवन दृष्टि का अत्यन्त निर्दोष, सुन्दर एवं भव्य स्वरूप दिखाई देता है, तो दूसरी ओर संस्कृत रंग-पद्धति का अत्यन्त मोहक प्रतिमान। बीसवीं सदी के अन्तिम सोपान में रचित ‘शकुन्तला की अँगूठी’ में एक तरफ़ आज के मशीनी विध्वंसक तनाव के बीच उन पुराने शान्त, समृद्ध जीवन-मूल्यों का सन्धान तथा सन्निधि है और दूसरी तरफ़ आज की यथार्थपरक मंचन शैली के माध्यम से संघर्षविहीन प्राचीन नाट्यदृष्टि का पुनर्निर्माण संवेदना, जीवन दोष, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध और बोली जाने वाली भाषा—’शकुन्तला की अंगूठी’ में पुनर्अन्वेषण एवं पुनर्व्याख्या की बहुस्तरीय प्रक्रिया चलती है।
जिस तरह कालिदास ने साहित्य परम्परा से कथा रूपरेखा लेकर ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ की रचना की है, उसी तरह प्रस्तुत लेखक ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ से संवेदना-सार लेकर शकुन्तला की अंगूठी की रचना की है। यह नाट्य-कृति भारतीय नाट्य परम्परा का अनन्य विस्तार है और भारतीय नाटक तथा रंगमंच की अनुपम उपलब्धि।
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